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आ पु॒त्रासो॒ न मा॒तरं॒ विभृ॑त्राः॒ सानौ॑ दे॒वासो॑ ब॒र्हिषः॑ सदन्तु। आ वि॒श्वाची॑ विद॒थ्या॑मन॒क्त्वग्ने॒ मा नो॑ दे॒वता॑ता॒ मृध॑स्कः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā putrāso na mātaraṁ vibhṛtrāḥ sānau devāso barhiṣaḥ sadantu | ā viśvācī vidathyām anaktv agne mā no devatātā mṛdhas kaḥ ||

पद पाठ

आ। पु॒त्रासः॑। न। मा॒तर॑म्। विऽभृ॑त्राः। सानौ॑। दे॒वासः॑। ब॒र्हिषः॑। स॒द॒न्तु॒। आ। वि॒श्वाची॑। वि॒द॒थ्या॑म्। अ॒न॒क्तु॒। अग्ने॑। मा। नः॒। दे॒वऽता॑ता। मृधः॑। क॒रिति॑ कः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् ! जैसे (विश्वाची) विश्व को प्राप्त होनेवाली (विदथ्याम्) घरों में नीति को (आ, अनक्तु) सब ओर से चाहे उसके उपदेश से आप (नः) हमारे (देवताता) दिव्य गुणों की प्राप्ति करानेवाले यज्ञ में (मृधः) हिंसकों को (मा) मत (कः) करें जो (देवासः) विद्वान् जन (सानौ) ऊपर ले देश स्थान में (विभृत्राः) विशेष कर पुष्टि करनेवाले (पुत्रासः) पुत्र जैसे (मातरम्) माता को (न) वैसे (बर्हिषः) उत्तम वृद्ध जन (आ, सदन्तु) स्थिर हों, उनकी आप कामना करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वही माता उत्तम है जो ब्रह्मचर्य से विदुषी होकर सन्तानों को अच्छी शिक्षा देकर विद्या से इनकी उन्नति करे, वही पिता श्रेष्ठ है जो हिंसादि दोषरहित सन्तान करे, वे ही विद्वान् प्रशंसा पाये हैं जो और मनुष्यों को माँ के समान पालते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यथा विश्वाची विदथ्यामानक्तु तदुपदेशेन त्वं नो देवताता मृधो मा कः ये देवासो सानौ विभृत्राः पुत्रासो मातरन्न बर्हिषः आ सदन्तु ताँस्त्वं कामयस्व ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (पुत्रासः) पुत्राः (न) इव (मातरम्) (विभृत्राः) विशेषेण पोषकाः (सानौ) ऊर्ध्वे देशे (देवासः) विद्वांसः (बर्हिषः) प्रवृद्धाः (सदन्तु) आसीदन्तु (आ) (विश्वाची) या विश्वमञ्चति (विदथ्याम्) विदथेषु गृहेषु साध्वीं नीतिम् (अनक्तु) कामयताम् (अग्ने) विद्वन् (मा) (नः) अस्माकम् (देवताता) दिव्यगुणप्रापके यज्ञे (मृध्रः) हिंस्रान् (कः) कुर्याः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । सैव मातोत्तमा या ब्रह्मचर्येण विदुषी भूत्वा सन्तानान् सुशिक्ष्य विद्ययैषामुन्नतिं कुर्यात् स एव पिता श्रेष्ठोऽस्ति यो हिंसादिदोषरहितान् सन्तानान् कुर्यात् त एव विद्वांसः प्रशस्ताः सन्ति येऽन्यान् मनुष्यान् मातृवत् पालयन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ ः या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी विदुषी ब्रह्मचर्यपूर्वक संतानांना चांगले शिक्षण देऊन विद्येने उन्नत करते तीच माता उत्तम असते. जो संतानांचे हिंसक दोष दूर करतो, तोच पिता श्रेष्ठ असतो. जे मातेप्रमाणे माणसांचे पालन करतात तेच विद्वान प्रशंसनीय असतात. ॥ ३ ॥